साकेत – गीत

ज्ञान का केन्द्र, कला का धाम, जहाँ कण-कण में बसते राम,
भारती-मन्दिर  ललित ललाम,  प्रकृति   ने जिसे  सँवारा है।
यही साकेत हमारा है।

अयोध्या  सरयू-तट  अभिराम,  माधुरीयुक्त  अवध की शाम,
कल्पाना  ‘राघवदास’  ‘नरेंद्र’,  धरा  पर    स्वर्ग-सितारा   है।
यही साकेत हमारा है।

पुण्य  का पाठ, स्नेह-सम्बन्ध, कर्म के कुसुम, धर्म की गंध,
आर्य-संस्कृति    का    उच्चादर्श,    साधना   का गुरूद्वारा है।
यही साकेत हमारा है।

त्याग-तप-मण्डित,उर-अनुराग,अमर-अभिलाषा, विमल-विराग,
दीप   से    दीप  जले  अविराम,  लक्ष्य-गुरू गौरव न्यारा है।
यही साकेत हमारा है।

रचना प्रेरक : प्रो यदुवंश राम त्रिपाठी 

रचनाकार : श्री राम अकबाल त्रिपाठी ‘अनजान’